...

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मैं कौन
"मैं कौन"

"पता ख़ुद का ही ढूढ़ रही
अब ना पूछो कि मैं कौन हूँ।
चलती नदिया सी अविरल
गहरा ठहरा एक समंदर हूँ।
बहती चंचल बयार बासंती
मरुथल का एक बबंडर हूँ।
खिलती पंखुड़ी फूलों की
सिमटी एक कली अनजान हूँ।
सीपी से छुपाये भाव मन के
उन्मुक्त खग की सी पहचान हूँ।
अरुणोदय से ले अभिलाषा
उम्मीदों भरी ढलती शाम हूँ।
आकाश भर सपन सलोने
संघर्ष धरा सा देती पैगाम...