...

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मेरे शब्द
मेरे शब्दों को समझने के लिए

ख़ुद से भी ना कह सका जो कभी
आज उन्हीं अल्फ़ाज़ों को दोहराता हूँ,
तन्हाई में जिन लब्ज़ों से डरता था
तुझको बतलाने के लिए उन्हें ही परोस रहा हूँ,
पन्नों पर उकेरी अलिफ़ को पढ़ने को
मेरे शब्दों को समझने के लिए,
भुला कर ख़ुद को
एक दफ़ा ख़ुद को मेरे नज़रों से तुम देखो,
व्यर्थ है प्रयास मेरा, बईमान मोहब्बत अपनी
ग़र फ़िर भी तुम समझ ना सको,
हौले से लब्ज़ों को मेरे
दिल से लगा कर तुम पढ़ सको,
फ़िर मुक्कम्मल मेरा इश्क़ है
की हर लब्ज़ में मेरा इश्क़ है.

© LivingSpirit