कितना यकीन हो
बहुत करीब से देखा है हमने
ज़िन्दगी को तिश्नगी में पिघलते हुए
ख़्वाबों की चिताएं सजते हुए और
वफ़ाओं को तड़प में जलते हुए
कितना यकीन हो ख़ुद पर खुदा
कितना गुज़र हो, खुद से लड़ते हुए
कभी तो ऐसा भी हो कि जीने लगे
हर ख्वाहिशें, खुशियों में पलते हुए
© paras
ज़िन्दगी को तिश्नगी में पिघलते हुए
ख़्वाबों की चिताएं सजते हुए और
वफ़ाओं को तड़प में जलते हुए
कितना यकीन हो ख़ुद पर खुदा
कितना गुज़र हो, खुद से लड़ते हुए
कभी तो ऐसा भी हो कि जीने लगे
हर ख्वाहिशें, खुशियों में पलते हुए
© paras