...

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कितना यकीन हो
बहुत करीब से देखा है हमने
ज़िन्दगी को तिश्नगी में पिघलते हुए

ख़्वाबों की चिताएं सजते हुए और
वफ़ाओं को तड़प में जलते हुए

कितना यकीन हो ख़ुद पर खुदा
कितना गुज़र हो, खुद से लड़ते हुए

कभी तो ऐसा भी हो कि जीने लगे
हर ख्वाहिशें, खुशियों में पलते हुए
© paras