सुबह स्वागत कविता
मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ
देखने असली चेहरा , बन के वक़्त का पेहरा
जो किनारो पे ना ठेहरा , वो नीर बनके आया हूँ
मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ ।
क्रूरता से बुद्धिमता तक , रेत से विशालता तक
बगीचे के कुसुम से जंगल के बरगद तक
जो पहचान को मांगे अपना हक़ , वो...
देखने असली चेहरा , बन के वक़्त का पेहरा
जो किनारो पे ना ठेहरा , वो नीर बनके आया हूँ
मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ ।
क्रूरता से बुद्धिमता तक , रेत से विशालता तक
बगीचे के कुसुम से जंगल के बरगद तक
जो पहचान को मांगे अपना हक़ , वो...