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विश्वासघात...
क्या कसूर था उस मासूम का,
बस इतना ही कि तुम पर विश्वास किया,
फल में पटाखे भरकर जो तुमने उसे खिला दिया,
बेरहमी से उसे मारकर उसका यह अंतिम साल बना दिया।।

मनुष्य पर विश्वास कर उसने वह फल खा लिया,
पर तुमने विश्वास घात कर उसे जनत में पहुचा दिया।
उस नन्ही सी जान की तुमने जरा सी परवाह ना कि,
उस असहाय और बेजुबान हथनी की तुमने जान लेली।।

वह बेजुबान थी मगर उसके ईश्वर ने सब जान लिया,
उसकी प्रार्थना में वह पीड़ा को उन्होंने भांप दिया।
अब ऐसा समय आएगा जब वह तुमसे बदला लेगी,
किसी ना किसी तरह तुम्हें भी पीड़ा पहुंचाएगी।।

हे मनुष्य तू कुदरत के खिलाफ मत जा,
अभी भी समय है तू जरा सा संभाल जा।
कुदरत के साथ जो तूने खिलवाड़ किया है,
उसकी रचनाओं का जो तूने हाल किया है।

एक ऐसा समय भी आएगा,
जब कुदरत के सब्र टूट जाएगा।
फिर पूरी कायनात तेरा ऐसा हाल करेगी,
हर गुनाह का तुझसे बदला लेगी।।

उस दिन तेरा विनाश होगा,
तुझे तेरी गलतियों का पश्चताप होगा।
पर तुझे पीछे छोड़ समय आगे बढ़ जाएगा,
शायद फिर तेरा अस्तित्व पन्नों में ही रह जाएगा।।

अभी भी समय है तू संभल जा,
कुदरत के खिलाफ मत जा।
उसकी रचनाओं का तू सम्मान कर,
पेड़ पौधे और अन्य जीवों की रक्षा कर।।

तुझे सब कुछ कुदरत ने ही तो दिया,
अपना जीवन और अस्तित्व तूने उसी से लिया।।


-सिद्धांत मेहरा
© sidhant