sapna
आज देखा मैनें एक सपना।
ऐसा लगा कोईं नहीं हैं अपना।।
पहले लगा बहुत डर सा।
क्योकि कुछ भी नही था घर सा।।
ना था कोई अपना, ना थी कोई पहचान।
सब थे वहां, पर..... अनजान!!
ना मम्मा थी, ना पापा थे ना था भाई।
याद आ रही थी वो प्यारी प्यारी लडाई।।
अगले दिन थी दिवाली ,वो भी पूरी खाली।
ना थे पटाखे ना थी मिठाई।।
पर बीतने लगे दिन, बढता गया सपना।
जंहा थे सब अनजान, अब होने लगा अपना।।
सब संभालना सिखने लगी।
अब...
ऐसा लगा कोईं नहीं हैं अपना।।
पहले लगा बहुत डर सा।
क्योकि कुछ भी नही था घर सा।।
ना था कोई अपना, ना थी कोई पहचान।
सब थे वहां, पर..... अनजान!!
ना मम्मा थी, ना पापा थे ना था भाई।
याद आ रही थी वो प्यारी प्यारी लडाई।।
अगले दिन थी दिवाली ,वो भी पूरी खाली।
ना थे पटाखे ना थी मिठाई।।
पर बीतने लगे दिन, बढता गया सपना।
जंहा थे सब अनजान, अब होने लगा अपना।।
सब संभालना सिखने लगी।
अब...