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सीता माता सी कोई नहीं!
राधा बनने को सब चाहे
माता सीता सी कोई नहीं।
सब कृष्ण के प्रेम में भटक रही
संग राम के वन में कोई नही।।
ये क्यों कहते हैं धोका खा गई
रो-रो वक़्त गुज़ार रही।
सब ढूंढ़ती रही है
राजभवन सीता सा वन पथ कोई नहीं।।
फिर कहां मिलेगा सत्य प्रेम जो कर्तव्यों से जूझी नहीं।
वो जनक सुता महलों की ज्योति वन आकर भी बूझी नहीं।।
बीता दिया कांटों में जीवन फिर भी लंका की हुई नहीं।
राम हुए बस सीता के..... वो और किसी की हुई नहीं।।
राधा बनने को सब चाहे
माता सीता सी कोई नहीं।
सब कृष्ण के प्रेम में
भटक रही संग राम के वन में कोई नही।।
© 🄷 𝓭𝓪𝓵𝓼𝓪𝓷𝓲𝔂𝓪
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