के अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है!!
के अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है,
अक्सर सवेरों से बच के निकलता हूं,
रात की तन्हाईयो में चुपके से खुद से मिलता हूं,
अंधेरों की दहलीज़ मुझे हर दम अपनाती है,
अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है,
मैं ज्यादा बोलता नहीं था, ये तो मालूम था तुम्हें,
एक दूसरे से कहने की जरूरत शायद नहीं थी हमें,
क्या था मन में...
अक्सर सवेरों से बच के निकलता हूं,
रात की तन्हाईयो में चुपके से खुद से मिलता हूं,
अंधेरों की दहलीज़ मुझे हर दम अपनाती है,
अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है,
मैं ज्यादा बोलता नहीं था, ये तो मालूम था तुम्हें,
एक दूसरे से कहने की जरूरत शायद नहीं थी हमें,
क्या था मन में...