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तरसते अरमान
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कुछ कहते हैं मुझसे मेरे तरसते अरमान
अब भी टीस रह गई, जहां हैं गहरे निशान
मेरे किताबों के फटे पन्ने बिखरे हैं यहां वहां
चीखते है शब्द मेरे और पूछते है मैं हूं कहां
ऐसा लगता है जैसे कल परसों की तो बात हो
करते थे हम दुआएं कि अटूट हमारा साथ हो
न जानें क्यों उस ऊपरवाले को ये मंजूर ना था
चंद मिली सांसे मुझे इसमें मेरा कोई कुसूर न था
टूटी जो इनकी डोर अब पूछती है मेरी रूह मुझसे
कि कहां है मेरा अश्क और वो मेरी अधूरी कहानियां
नासूर बनकर आज भी कहते है मेरे तरसते अरमान मुझसे
कि मिलती थोड़ी और मोहलत तो दिखाते अपनी नादानियां



अपराजिता आनंद




© Rhycha