...

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खामोशी के स्वर

कुछ अनकही सी बातें
खामोशी के स्वर मेरे
संग मरमरी फिसलन है
उम़ की ढलान पर
गुजरते हुए पलों में
साथ साथ अपने में
रहते हैं मगन खैर
मांगते हुए एक दूसरे
की ऐसा है दौर
पेड़ पौधो फूल कलियों में
योरक्योट की गलियों में
लगाये रखता मन रंगीन
वो खाना बनाने में
शालीग्राम और मोहन में
बच्चों से बांतों में तल्लीन
सबके मीत अलग चाह अलग
फिर भी चलता है जीवन
मुझमें समा रहा बचपन
संभल संभल रखता क़दम
घुटन नहीं क्लेश नहीं
उल्लास नहीं उत्साह नहीं
जीवन से अब कुछ आस नहीं
एक आन से आफ होने का
वो स्विच मेरे पास नहीं



© mast.fakir chal akela