...

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मेरी लाडो...
बरसों का इंतज़ार बीता,
आंगन में एक ख़ुशी लहराई,
समाज के तानों में माँ का विश्वास जीता,
सोच के बेबस वो मुस्काई,
पर ये क्या बेबस क्यों है माँ,
जिसने वंश का मान बढ़ाया,
क्या था उसके दिल में जो यूँ आसूं छलक आया,
बेटा होगा या बेटी इस बात पे माँ क्यों घबराई,
दोनों ही हैं हिस्सा उसका
फिर क्यों मुजरिम सा खुद को पाई,
मेरी बेटी का ना इंतज़ार किसी को,
बेटा आए है अरमान सभी को ,
डरती हूँ हो ना मेरे जैसा हाल तेरा,
तेरी ऑंखें खुलने से पहले हो ना हाथ लाल मेरा,
बस यही बस यही भेजूँ संदेश मेरी लाडो
की ना तू आना - तू ना आना इस देश मेरी लाडो....

फिर एक रात..
एक रात जो चीख सुनी तो माँ घबराई,
हूँ मैं यहाँ अकेली ये आवाज़,
ये आवाज़ कहाँ से आई,
इधर-उधर घबरा कर देखा,
दो पल में सारा आलम महका,
माँ.... माँ....
ये मैं हूँ तेरी नन्ही परी,
यहाँ वहाँ क्यों तू देखे,
मैं तो तेरे ज़ेहन में बसी,
माँ छलकते आंसू को रोक ना पाई,
अंचल की गर्मी में जैसे बौछार लहराई,
माँ....
मत सोच मेरा जीवन क्या होगा,
खुद की ममता को यूँ ना दे...