मर्म
खुद पर इतना गुमान ना कर
तू ना जाने स्त्री का मन
अकेली होकर भी,वो अकेली नहीं
लिपटी होती है, सांसे उसकी
तेरी यादो की सरगर्मी से
दो आंसू भी आ जाये
गर तुझे याद कर,आँखों मे उसकी
तो खुद को,खुदा का
खुशनसीब बंदा समझ
तू ना जाने स्त्री का मन
अकेली होकर भी,वो अकेली नहीं
लिपटी होती है, सांसे उसकी
तेरी यादो की सरगर्मी से
दो आंसू भी आ जाये
गर तुझे याद कर,आँखों मे उसकी
तो खुद को,खुदा का
खुशनसीब बंदा समझ
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