मेरे हिस्से में दुख हजार आए,
जो कूदे बहर ओ बर में वो ही बाहर आए,
जो जानते थे तैरना वो ही किनार आए,
मेरा दुख महज किस्सा नहीं पूरी कहानी है,
मैं क्या ही कहूं मेरे हिस्से में दुख हजार आए,
एक रोज फिर थामी कलम लिखने लगा था मैं,
मैं हर्फ तक न लिख सका बस तेरे ही सवाल आए,
जितना सोचा उभरने का मैं उतना ही फंसता गया,
यार...
जो जानते थे तैरना वो ही किनार आए,
मेरा दुख महज किस्सा नहीं पूरी कहानी है,
मैं क्या ही कहूं मेरे हिस्से में दुख हजार आए,
एक रोज फिर थामी कलम लिखने लगा था मैं,
मैं हर्फ तक न लिख सका बस तेरे ही सवाल आए,
जितना सोचा उभरने का मैं उतना ही फंसता गया,
यार...