...

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कुछ ख्वाब
कुछ ख्वाब अधूरे डेरा डाल बैठे है
कुछ उम्मीदों पंख पसारे
कुछ लतीफे गुनगुनाते
कुछ आरजू जगाते
कुछ लेन देन से
व्यापार को समझाते
ये निद्रा की आड़ मैं
सपनों के बहाने
जिंदगी के दर्पण से
रुबरु करा बैठे हैं ।
कुछ ख्वाब इस कदर
उलझने बढ़ा बैठे है।
© muskan parker