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त्याग
घर के मंदिर में ममता की मूरत है वो,
प्यार के आईने में झलकती ईश्वर की सूरत है वो।
मोमबत्ती से जलती रहती है
और खुद दर्द सहती है वो,
दुजो को तो प्रकाश में करती है
पर खुद पिघलती रहती है वो।
अपनी खुशियों के पंख काट कर
हमें पंख लगाती है वो,
धरती सी सिसकती रहती है
पर हमें ऊंचाइयां छूआती है वो।
जीवन के सारे रंगों को
हम में भर देती है वो,
खुद एक कोने में सिमटकर
हमें जन्नत की राह दिखाती है वो।
दुनिया की चुभन सहते सहते
त्याग की प्रतिमूर्ति बन जाती है वो,
ऐसी भी एक नारी होती है
क्योंकि मां के नाम से जानी जाती है वो।
© silver mess
प्यार के आईने में झलकती ईश्वर की सूरत है वो।
मोमबत्ती से जलती रहती है
और खुद दर्द सहती है वो,
दुजो को तो प्रकाश में करती है
पर खुद पिघलती रहती है वो।
अपनी खुशियों के पंख काट कर
हमें पंख लगाती है वो,
धरती सी सिसकती रहती है
पर हमें ऊंचाइयां छूआती है वो।
जीवन के सारे रंगों को
हम में भर देती है वो,
खुद एक कोने में सिमटकर
हमें जन्नत की राह दिखाती है वो।
दुनिया की चुभन सहते सहते
त्याग की प्रतिमूर्ति बन जाती है वो,
ऐसी भी एक नारी होती है
क्योंकि मां के नाम से जानी जाती है वो।
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