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माँ जैसा प्यार (ये कविता एक दस साल के बच्चे के दृष्टिकोण से लिखी गयी है।)
मेरी माँ मुझसे प्रेम कुछ ज़्यादा ही करती हैं,
पापा मुझें बिगाड़ते है इसलिये उनसे भी वों लड़ती हैं।
पूरे दिन पूंछती है कि आज क्या मन है तुम्हारे खाने का,
फिर थाली में परस के कद्दू धोखा देती ज़माने का।
कहती है ज़िन्दगी मे दूर तक जाना पर घर से बाहर तक नही निकल पाता हूँ,
अरे माँ 5 रोटी पेट में पड़ी है अब एक ओर कैसे खा लूँ यही तुम्हें समझाता हूँ।
अरे माँ दिया ही तो बुझा था क्या ज़रुरत थी इतना ज़्यादा डरने की,
और हा बस थोडा सा पैर फ़िसला तो ख़रोच लग गई ये भी कोई वजह थी आँख में आंसू भरने की ।


वों माँ है हर बिमारी का कारण मोबाइल ही समझती है
Complan के डिब्बे में सेंधानमक भर कर रखतीं है
घर आएँ कोई तो पैसें बिलकुल नही लेना ये कह कर मुझें समझाती है,
और अब नही लिये तो ग़ुस्सा है ये कैसा व्यवहार मेरा चाहतीं है।
पूरा बाजार घूमा कर पूछतीं है बताओं तुम्हें क्या लेना है,
और अभी तक racing car नही दिलायी हमेशा महंगायी का चूरन ही देना है।
सर दर्द से लेकर पैर दर्द तक हर मर्ज़ का इलाज़ इनके पास है,
कई दिनो बाद icecream का container देखा पर इसमे तो च्यावनप्रश है।

पर कुछ भी कहों ये प्यार ही तों है जिसने हमे सम्भाल के फूलो की सेज़ पर लिटाया है,
वरना ये ज़माना बड़ा ही क्रूर है हम पर दया नही करेगा इसने तो फूटी कौड़ि के लिये भी तरसाया हैं ।
किसी भी आपदा में जिसने तुम्हें आंचल में अपने लपेटा है,
घूम आए दुनियाँ सारी ? अब बताओ माँ जैसा प्यार कही देखा है ?


© breeze_of_ feb

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