दूर बैठे मैं तुझे यूं ही ताकते रह गई...
यूं दूर बैठे ही मैं तुझे एक टक ताकते रही
तुझसे बिन पूछे ही तेरी नाराज़गी भांपते रही
रुकी रही तेरे इंतज़ार में,
इसी आस में कि कहीं मेरी ये बेहद सोचने की आदत तुझे दर्द ना पहुंचा दे...
तुझसे बिन पूछे ही तेरी नाराज़गी भांपते रही
रुकी रही तेरे इंतज़ार में,
इसी आस में कि कहीं मेरी ये बेहद सोचने की आदत तुझे दर्द ना पहुंचा दे...