...

1 views

अनकही दास्तां
कहता हूं तुमसे मैं अपनी, आज अनकही दास्तां,
जिससे तुम्हे कभी ना रहा, थोड़ा सा भी वास्ता ।

कहने को तो दिया तुमने, सम्मान बड़ा ही सस्ता,
आज मुझे देख बचा नहीं है, दुजा कोई भी रास्ता।
©®@Devideep3612
बहता गया यूं ही मैं भी,बातों में तेरी आहिस्ता,
क्या से क्या था समझा तुझको, माना अपना फरिश्ता ।

दुनियांसे जुदा बनने लगा था, तेरा मेरा रिश्ता
टुकड़े टुकड़े कर दिया तूने, रहा सिर मैं नोचता ।
©®@Devideep3612
ऐसा क्यों सुझा हरजाई, क्या थी तेरी विवशता?
जुड़ने पहले तोड़ दिया है, कर हनन मेरी निजता ।

कैसे कहूं अब क्या बतलाऊं, क्या है मेरी दास्तां??
बस चुप जबान कर अब तो तेरी, तेरा ही तुझको वास्ता ।
©®@Devideep3612