...

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मन की अभिलाषा
तुम फिर से वो तस्वीर सिरहाने लगा दो न।
मैं उसे निहारता रहूँ और तुम मुस्कुरा दो न।

एक अरसा बीता तुम्हारी आवाज़ सुने हुए।
मैं तुम्हारी आँखों में देखूं तुम गुनगुना दो न।

तुम कहती हो कि कुछ शब्द अनकहे होते हैं।
मैं खोजूँ तुम्हें लफ़्ज़ों में तुम कुछ सुना दो न।

साल बीत गया पुराना नया वर्ष आने को है।
तुम मुझे कितना प्यार करोगी हमें जता दो न।

खुशियों के चंद दिन गुजार दूँ तेरी ज़ुल्फ़ों तले।
ऐसी ही चुलबुली, हसीन एक शाम दो न।

मैं तेरा तुम मेरा हाथ थाम लो उड़ जाएं आसमाँ में।
करें छितिज की सैर हम ऐसी परवाज़ दो न।




© अर्जुन इलाहाबादी