...

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विदा
सभी से मैं ने विदा ले ली:
घर से,
नदी के हरे कूल से,
इठलाती पगडंडी से
पीले वसंत के फूलों से
पुल के नीचे खेलती
डाल की छायाओं के जाल से।

सब से मैं ने विदा ले ली:
एक उसी के सामने
मुँह खोला भी, पर
बोल नहीं निकले।