कविता सी पहेली है मेरी पक्की सहेली
दोपहरी में घर से निकली
सर पर ताने काली छतरी
मैं और मेरी काली छतरी
साथ चल पड़े जल्दी-जल्दी
इतनी जल्दी में देख कर
हंसी ठहाका लगाया सूरज
कहां को निकली दोनों सहेली
इतनी धूप में सुलझाने कौन सी पहेली
देख उसे हमने मुंह फुलाया
हमें देख वह फिर मुस्काया
उसकी...
सर पर ताने काली छतरी
मैं और मेरी काली छतरी
साथ चल पड़े जल्दी-जल्दी
इतनी जल्दी में देख कर
हंसी ठहाका लगाया सूरज
कहां को निकली दोनों सहेली
इतनी धूप में सुलझाने कौन सी पहेली
देख उसे हमने मुंह फुलाया
हमें देख वह फिर मुस्काया
उसकी...