...

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एक हुनर ।
काश! कि मुझे बदलना आता।
कोई मेरा दिल तोड़ जाता
और मैं मुस्कुरा देती।
कोई जब मुझ से कहता
कि जा मुझे भूल जा ,
तो मैं भी कह देती ,कोई नहीं
तू भी आगे बढ़ जा
मैं भी आगे निकल जाऊं।
काश! कि मुझे बदलना आता।

कोई मुझे मतलबी स्वार्थी कहता
तो मैं कह देती कि जा
आज से मैं तुझ से प्यार नहीं करती।
काश !कि मुझे बदलना आता ।
मेरे साथ चलने वाले
जब मुझे छोड़ कर
बहुत आगे निकल जाते
तो मै भी इक नई राह पकड़ लेती
उसी जगह ठहर कर उनके
इंतज़ार में ना तकती।
काश! कि मुझे बदलना आता।
काश! कि मेरे वह रिश्ते
जिन्हें दुनिया अपना कहती है।
मुझे गैर होने का एहसास दिलाते
तो मैं भी उन्हीं कि तरह गैर बन जाती,
उनके अजनबी से रवैय्ये में
अपनापन तलाश ना करती।
काश! कि मुझे बदलना आता।

लेकिन अफसोस मुझे बदलना नहीं आता।
कभी कभी खुदा से नाराज़गी सी होने लगती है
कि क्यों?
सारे जहां को बदलना सीखा दिया
और मुझे बिल्कुल अनाड़ी बना दिया,
वह हुनर यानि "बदलने का"
जिससे तकरीबन हर कोई
मालामाल है।
तो इस सिलसिले में मेरा वजूद
क्यों कंगाल है?
क्यों लोग बदल जाते हैं
क्यों मेरे अपने मेरे बिना भी
खुश रहते हैं?
क्यों मैं बदल नहीं पाती?
क्यों किसी के साथ छोड़ देने पर
वहीं ठहर सी जाती हूं?

ज़िन्दगी नहीं ठहरती
वक़्त भी नहीं ठहरता।
अरे उन्हें भी तो बदलना आता है
कोई साथ चले तो साथ चलते हैं।
लेकिन अगर कोई छूट गया
तो पलट के भी नहीं देखते।

काश !कि मुझे भी इनकी तरह बदलना आता
अपने मे ही खुश रहना आता।
अकेले ही चलना आता।

काश ! कि मुझे भी बदलना आता।

FAYZA.

© fayza kamal