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तेरी सरकी चुनर, जब लहराए पवन।
तेरी सरकी चुनर, जब लहराए पवन।
जब श्रृंगार में होती तू, तुझे देखे गगन।।
अब तो हर खुशी छाई है, तुझे देखकर।
जो हाथो से पकड़ी हो चुनर, झुक- झुककर।।


इतना मनोरम छवि लेकर, जो तू आई।
दिल कहता है अब तुझे देखता जाऊं, न हो पराई।।
जो लट घूमती हो खुले आसमानों , कितनी अच्छी लगती हो।
होठों के मुस्कान यूं तो, जैसे कच्ची कली लगती हो।।



तुझे देखकर मै वहां से हट नहीं पाया।
तेरी पायल की छम- छम , मेरे दिल में समाया।।
कितनी पतली लता हो, ये मालूम नहीं था।
बागों से जो सरकती आई, ये भी मालूम नहीं था।।


बस तुझे ही देखता जाऊं, तू मेरे नज़रों से न हटे।
जो तू आई मेरी गलियों में, बस फूल ही नजर आए, गुम हुए कांटे।।
अब तो आसमां भी तुझे प्यार कर रहा, तुझे देखकर।
दुआ करता है वो भी, बारिश से गुजर कर।।



कुछ तो है तेरे दिल के अंदर, जो पवन चुनर को लहराए।
समा बुझ न पाए उनके, जो तू नजर आए।।
आज बेचैनी कम कर दी, जो तू आई।
आकर तू मेरे दिल में समाई।।

लेखक/कवि- मनोज कुमार

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