...

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वहशत
अब बाज़ भी आओ यार अपनी इन हरकतों से
आख़िर क्या बनाओगे तुम, झूठी इन शोहरतों से

एक दफ़ा सच बोलना आइनें में अपने अक्स से
ख़ाक कर देना जो किए थे वादे उन ख़तों से

एक सीख तो ली होती, माज़ी में हुई गलतियों से
एहसान माना करो तुम ज़िंदा हो जिन रहमतों से

गिनवाते हो खामियां, बढ़ जाओ आगे आंखों से
बाम का कोना जो हंसता था किन मुहब्बतों से

अज़ीब है ना,हमेशा टकराते हो तुम बेवफाओं से
बस अब रुको भी यार , तुम "मन" इनायतों से

© ग़ज़लWali

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