मानवता
क्यों दर्द हरदम,अपने ही देते,
गैर तो मिलते हैं,मलहम ही लेकर।
तब भी तो जीते,अपनों के लिए,
तन–मन को, ताक पर रखकर।
क्यूं ना जिएं हम सबके लिए,
शिव के सम गरल पीकर।
अपनों में आखिर है ही...
गैर तो मिलते हैं,मलहम ही लेकर।
तब भी तो जीते,अपनों के लिए,
तन–मन को, ताक पर रखकर।
क्यूं ना जिएं हम सबके लिए,
शिव के सम गरल पीकर।
अपनों में आखिर है ही...