आवाज़
बेड़िया है जो यह समाज की,
तुम क्यों इससे डरती हो?
नम इन आँसुओ को खुदमे क्यों छुपाती हो।
कि हा सुना है मैंने तेरी पायल की छन छन।
वो माथे मैं सजा कुमकुम का तिलक।।
यू खुदको निहारती आईने मैं मुस्कुराती,
तो फिर क्यों घूम हो जाती आपने ही ख़यालो मैं।
क्या जरूरी है,
हर बार खुदका ही मन मरना?
ये (samzoto) की बगिया मैं नंगे पाव उतरना।
आखिर कब तक तुम खुदकी कुर्बानी देती रहोगी?
तुम स्त्री हो जनाब,...
तुम क्यों इससे डरती हो?
नम इन आँसुओ को खुदमे क्यों छुपाती हो।
कि हा सुना है मैंने तेरी पायल की छन छन।
वो माथे मैं सजा कुमकुम का तिलक।।
यू खुदको निहारती आईने मैं मुस्कुराती,
तो फिर क्यों घूम हो जाती आपने ही ख़यालो मैं।
क्या जरूरी है,
हर बार खुदका ही मन मरना?
ये (samzoto) की बगिया मैं नंगे पाव उतरना।
आखिर कब तक तुम खुदकी कुर्बानी देती रहोगी?
तुम स्त्री हो जनाब,...