ये आशिक़ी मेरी
महंगी पड़ी आशिक़ी मेरी
बिखेरे सारे नज़ारे मेरी आखों के
लम्हें चुभते जैसे किसी पैने कंजर सी
भरते घाव अपने उन आखों के पानी से
पता नही ये फूलों के रास्ते में
कांटों का आना कब हुआ
मेहरबानी उन दुआओ की
जो मुझ तक ना पहुंच सके
ये घायल सा किसी यात्री सा,
छाव की ओर बड़ता मैं
यादें चूहों सी कुतरती
मुझे आज भी
बिखरा पड़ा मैं आज भी
इंतजार रिहाई इस
शरीर से मुझे आज भी
भागता खुद की परछाई से अब मैं
डरता ख्वाबों से मैं अब अपने
दुहाई देती आत्मा मेरी
शरीर को मेरे छोड़ जाने को
ऐसी थी मेरी कहानी अब तक मेरी
ये आशिक़ी मुझे यहां तक ले आई
यहां तक ले आई...
© anonymous writer
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