रोज़ ढलती शामों को....
रोज़ ढलती शामों को रौनकों का इसरार रहता है
तुम आओ चाहे ना सही,पर इंतजार तो रहता है।
बीत कर भी खत्म नहीं होती ये रात की तनहाई,
रोशन सुबह की उम्मीदों से मेरा घरबार तो रहता है।
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तुम आओ चाहे ना सही,पर इंतजार तो रहता है।
बीत कर भी खत्म नहीं होती ये रात की तनहाई,
रोशन सुबह की उम्मीदों से मेरा घरबार तो रहता है।
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