एक क़िस्सा
चलो एक क़िस्सा ही सुनाऊँ तुम्हें मेरी ज़िंदगी के चलते दौर का।
एक सख़्श मेरा होने का दावा करता है होकर किसी और का।
काग़ज़ी दौर में मैं उसकी कल्पित कल्पनाओं में हक़दार हूँ।
उस कनिज़ कौन बताये कि मैं तो झूठे रिश्ते में भी वफ़ादार हूँ।
समेटे समुन्दर् अपनी आँखों में , परेशान करता है मुझे ये दुनिया का शोर सा।
एक सख़्श मेरा होने का दावा करता है होकर किसी और का।
उसकी गुफ़्तगू में वो मुझे प्राथमिकता पर...
एक सख़्श मेरा होने का दावा करता है होकर किसी और का।
काग़ज़ी दौर में मैं उसकी कल्पित कल्पनाओं में हक़दार हूँ।
उस कनिज़ कौन बताये कि मैं तो झूठे रिश्ते में भी वफ़ादार हूँ।
समेटे समुन्दर् अपनी आँखों में , परेशान करता है मुझे ये दुनिया का शोर सा।
एक सख़्श मेरा होने का दावा करता है होकर किसी और का।
उसकी गुफ़्तगू में वो मुझे प्राथमिकता पर...