बहता चल
तू न थकना कभी, तू न रुकना कभी
तू निरंता बहता चल, बस आगे बढ़ता चल
अपने प्रवाह से चीर दे हिमालय का सीना
न रुक कहीं, न थाम कहीं...
अपने तेज वेग से अपनी राह खुद बना
असफलता की भस्म को तू माथे से लगा
राह में मिली ठोकरों की...
तू निरंता बहता चल, बस आगे बढ़ता चल
अपने प्रवाह से चीर दे हिमालय का सीना
न रुक कहीं, न थाम कहीं...
अपने तेज वेग से अपनी राह खुद बना
असफलता की भस्म को तू माथे से लगा
राह में मिली ठोकरों की...