...

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वो नारी ही है........!
एक नारी.....
कहीं पर राधा बनी
कहीं पर मीरा बनी
कहीं पर गंगा बनी
कहीं पर गिरिजा बनी
त्यागी अपनी हर इच्छा किया समर्पण
बाटा सिर्फ प्रेम,प्रेम और प्रेम.......।
एक नारी......
कहीं पर मां बनी
कहीं पर बहेन बनी
कहीं पर सहेली बनी
कहीं पर पत्नी बनी
बदनामी का घूंट पिया हर पग पग पर किया समर्पण
बाटा सिर्फ प्रेम, प्रेम और प्रेम.....।
एक नारी......
प्रेम की सूरत है
प्रेम की मूरत है
प्रेम की पराकाष्ठा है
प्रेम का ईश्वर है
निश्चल, निरपेक्ष, सहनशीलता है हर रोम रोम में किया समर्पण
बाटा सिर्फ प्रेम ,प्रेम और प्रेम ......।
एक नारी.....
आत्म सम्मनित मां दुर्गा का अंश है
नवरात्री में जो अखंड दीप जले उसकी बाती है
उसकी अखंड ज्योत है नारी
प्रेम, शुचिता और आनंद की प्रति मूर्ति है
जिसने की है तपस्या और अनगिनत त्याग
बाटा सिर्फ प्रेम ,प्रेम और प्रेम......।
एक नारी ......
कोई जानवर नहीं है
जो उसकी स्वतन्त्रता पर काबू किया जाए
काबू करके अपना बनाया जाए
जानवर काबू होकर सून तो लेता है
पर वो प्रेम है ये सोचना भूल है तुम्हारी ......
जो पीड़ा को खामोशी से सहेती कुछ ना कहती और होठो मुस्कान लिए
बाटा सिर्फ प्रेम, प्रेम और प्रेम.....।