Wo Shahr Apna Sa
आज फिर चले आये अपने शहर मे
सफ़र जिंदगी का कुछ यूँ था कभी लौट के न आ सके.
आज कितने दिनों बाद
देखा खिड़की से सुबह की हल्की धूप आती हुई .
जैसे लम्हे वहीं रुक गए .
आज फिर चाय की प्याली लिए सहेलियों साथ
देर तक बातें करते रहे
आज फिर चले आये
खामोश राह गुज़र पर
जहां हम अक्सर चले आते थे.
आज फिर चले आये अपने शहर .
कितने ख्वाब संग ले जाने के लिए
फिर लौट आने लिए शायद .
Jyotsana Srivastava
सफ़र जिंदगी का कुछ यूँ था कभी लौट के न आ सके.
आज कितने दिनों बाद
देखा खिड़की से सुबह की हल्की धूप आती हुई .
जैसे लम्हे वहीं रुक गए .
आज फिर चाय की प्याली लिए सहेलियों साथ
देर तक बातें करते रहे
आज फिर चले आये
खामोश राह गुज़र पर
जहां हम अक्सर चले आते थे.
आज फिर चले आये अपने शहर .
कितने ख्वाब संग ले जाने के लिए
फिर लौट आने लिए शायद .
Jyotsana Srivastava
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