बालपन
कहीं थी निगाहे, कहीं था निशाना,
तेरा रूठ जाना, वो हंस कर मनाना।
नहीं भूल पाएंगे चाहत के किस्से,
वो मुश्किल घड़ी मे तेरा मुस्कुराना।
वो छुप्पन छुपाई, वो पकड़न पकड़ाई,
वो छोटी मिलन की, वो लंबी जुदाई।
वो सांसो मे सरगम, वो आखों में आंसू,
बड़ी जिद कर भी, तेरा शरमा जाना।
वो तेरा साथ चलना, कभी बल खाना,
नटखट अदाओं पर, कभी लड़खड़ाना।
वो सावन की बारिश में, पीपल के नीचे,
वो छुप-छुप कर संग, तेरा भीग जाना।
वो सरसो के खेतों मे मेड़ो पर चलना,
टीले से तोड़ कर वो बेरों का चखना।
तन्हाई के आलम में अंगड़ाई लेते,
नदी के किनारे वो इंतजार करना।
कागज की कश्ती को जल पर तिराना,
वो नन्हीं सी गुड़िया से रुठना-मनाना।
फागुन के झुले पर रंगो को बिखराकर,
रंगोली बना कर अदब से सजाना।
नहीं भूल पाएँगे, वो तेरा मुस्कुराना,
वो साड़ी की पल्लू मे आखें चुराना।
मम्मी की गोदी मे माथे को रखकर,
लोरी सुनते हुए वो निंदिया बुलाना।
सदा याद आएँगी, वो सारी कहानी,
वो बचपन की यादें, मस्ती दीवानी।
बड़े प्यार से हंसकर बचपन चुराती,
प्यारी सी दादी, वो प्यारी सी नानी।
© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।
© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey
तेरा रूठ जाना, वो हंस कर मनाना।
नहीं भूल पाएंगे चाहत के किस्से,
वो मुश्किल घड़ी मे तेरा मुस्कुराना।
वो छुप्पन छुपाई, वो पकड़न पकड़ाई,
वो छोटी मिलन की, वो लंबी जुदाई।
वो सांसो मे सरगम, वो आखों में आंसू,
बड़ी जिद कर भी, तेरा शरमा जाना।
वो तेरा साथ चलना, कभी बल खाना,
नटखट अदाओं पर, कभी लड़खड़ाना।
वो सावन की बारिश में, पीपल के नीचे,
वो छुप-छुप कर संग, तेरा भीग जाना।
वो सरसो के खेतों मे मेड़ो पर चलना,
टीले से तोड़ कर वो बेरों का चखना।
तन्हाई के आलम में अंगड़ाई लेते,
नदी के किनारे वो इंतजार करना।
कागज की कश्ती को जल पर तिराना,
वो नन्हीं सी गुड़िया से रुठना-मनाना।
फागुन के झुले पर रंगो को बिखराकर,
रंगोली बना कर अदब से सजाना।
नहीं भूल पाएँगे, वो तेरा मुस्कुराना,
वो साड़ी की पल्लू मे आखें चुराना।
मम्मी की गोदी मे माथे को रखकर,
लोरी सुनते हुए वो निंदिया बुलाना।
सदा याद आएँगी, वो सारी कहानी,
वो बचपन की यादें, मस्ती दीवानी।
बड़े प्यार से हंसकर बचपन चुराती,
प्यारी सी दादी, वो प्यारी सी नानी।
© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।
© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey
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