...

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ये बारिश की बूंदे।
ये बारिश की बूंदे बिन मौसम क्या ख़ूब भाती है
दिल-लगी के लिए मेरे दिल को क्या ख़ूब लुभाती है,

सब्र-तलब मेरे मन को प्यार की अरमाँ में भिंगोती है
ये बारिश की बूंदे इश्क़ में पुरजो़र डुबोती है,

बूंदे जिस्मों को छू इश्क़ से महरूम कर जाती है
तुम ना हो हमारे पास फ़क़ीर-ए-रहगुजर कर जाती है,

अवचेतन पड़े जज्बातों को क्या ख़ूब सताती है
ये बारिश की बूंदे बिन मौसम बड़ी तड़पाती है।


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