अंतर्मन की व्यथा ✍️✍️✍️
अंतर्मन की व्यथा ✍️✍️✍️
मन इतर उतर होता रहता तुमसे लगकर आराम मिले !
सब द्वार गली हम ढूंढ लिए ये मन चाहे अब श्याम मिले !
अब श्याम मिले तो बरसा दूँ मन खोल व्यथा का नीर सभी !
हों पुण्य उदित न जाने कब दे दर्शन मुझको श्याम तभी !
मथुरा काशी सब घूम रहा पैरों में हैं पड़े अंगित छाले !
मन डूब रहा सुन मन की व्यथा अब तू सुन ले मुरली वाले !
नित धीर धरे...
मन इतर उतर होता रहता तुमसे लगकर आराम मिले !
सब द्वार गली हम ढूंढ लिए ये मन चाहे अब श्याम मिले !
अब श्याम मिले तो बरसा दूँ मन खोल व्यथा का नीर सभी !
हों पुण्य उदित न जाने कब दे दर्शन मुझको श्याम तभी !
मथुरा काशी सब घूम रहा पैरों में हैं पड़े अंगित छाले !
मन डूब रहा सुन मन की व्यथा अब तू सुन ले मुरली वाले !
नित धीर धरे...