...

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ग़ज़ल
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कभी दुश्मनी कभी दोस्ती इसे दिल से अपने निकाल दे
मिले एक लम्हा जो प्यार का तू उसी में सदियां गुजार दे

वो चला गया है जो रूठ के चलो लाएं उसको मना के फिर
कोई बोझ दिल से उतारकर उसे बाजुओं का हिसार दे

ये अना तेरी तुझे खाएगी तुझे ख़ाक में ही मिलाएगी
तू बना है प्यार के वास्ते इसे प्यार पे ही निसार दे

जो उठा हुआ है जहान में उसे दुनिया और उठाएगी
जो गिरा नज़र में जहान की उसे दिल में अपने शुमार दे

कभी पूछ दिल की ख़बर मेरे कभी अपने दिल की भी बात कर
वो ग़ज़ल जो तुझको सुकून दे उसे धड़कनों में उतार दे
© Deepak