...

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सन्नाटा
अंधेरा ही अंधेरा है जिधर देखूं
डर रही हूं आखिर किधर देखूं।
कभी लगता है,
सन्नाटा पसरा है हर ओर
कभी हर तरफ सुनती हूं
बस शोर ही शोर।
कभी दिल करता है,
दिल खोलकर रख दूं
कभी लगता है चुपचाप
बिना बोले बैठी रहूं।
कुछ कहने को बाकी नहीं
ऐसा क्यों लगता है
कुछ तो है जो दिल में
टीस बनकर खटकता है।
खुद से ही अनजानी सी कभी लगती हूं
सुनकर भी सबकुछ
अनसुना सा करती हूं।
लोग, हालात और बातें
समझ से परे लगती हैं
मैं आजमाती हूं जिंदगी को
और वो मुझे आजमाती है।