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चलो अपने देश
चलो मित्र! उस देश चलो
जहाँ प्रेम की गंगा बहती है।
कण कण में है,महादेव का वास
जो देवात्माओं की धरती है।

रक्षा प्रहरी गिरिराज हिमालय
चरण-वंदना करता सागर।
रेत स्वर्ण आभूषण सम शोभित।
हर्षित चित्त रहता जहाँ अम्बर।

प्रकृति की असीम अनुकंपा,
जहाँ,सौन्दर्यता की छटा निराली है।
सुन्दर-रमणीय,मनमोहक वादियाँ है जहां,
खुले मैदानों की छवि सुहानी है।

जहाँ चिड़ियों का कलरव गूँजता है,
सरिता,मधुर संगीत सुनाती है।
हवाओं में पुष्प सुगन्ध है बिखरी,
हरीतिमा चहुँओर सुहाती है।

चलो सखा! उस ओर चलें,
जहां काबा-काशी एक समान।
गंगा-जमुई संस्कृतियों का संगम है ।
जहाँ, कर्मपूजा श्रेष्ठ महान।

खून दे सींचा है जिसको
माटी के पुत्र किसानों ने।
जिसकी अखंडता को अक्क्षुण रक्खा है
माँ भारती के वीर जवानों ने।

जहां हर दिन त्यौहारों सा लगता है।
हर दिन ही ईद दिवाली है।
हर पुरुष में जहाँ श्रीराम बसे,
सिया रूप हर नारी है।

चलो संगी! अपने गाँव चलें।
जहाँ शहरों की आपाधापी से इतर
एक ठहराव की झलक लुभाती है।
जहां आज भी खुशियाँ खेतों में
दुनिया,गाँवों में पाई जाती है।

जहाँ हर मानुष संतुष्ट मगर
स्नेहामृत का प्यासा है,
जीने की जद्दोजहद है फिर भी
हर ह्रदय प्रेम का धाता है।

जहां जीवन के हैं रंग कई
कहीं धूप कहीं छाँव है।
जहाँ, स्वयं रवि उदित हो देते
नई उम्मीद, नई सुबह का पैगाम है।