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प्रताप प्रतिज्ञा

#प्रताप_प्रतिज्ञा

प्राचीन कालिक चित्तौड़ नगरी,
स्त्रियों से अधिक सुन्दर जो थी।
नुपुरों की उठी झंकारों से,
जो मधुर मनोहर रहती थी।।

वह पावन जन्म भूमि मेरी,
जो मेघ वस्त्र से घिरी हुई।
अत्यन्त मनोहर सस्य दलों से,
इच्छाओं से भरी हुई।।

वह आज सेवकों से विहीन,
असमर्थ और वह दीन हीन।
निर्दोषों के रक्त से सनी हुई,
कुछ मृत कुछ जीवित पड़ी हुई।।

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