...

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क्या तुम मुझे भुला पाओगे...
मुझे बुरा अपने लिए नहीं लग रहा है ,
तरस तो हमे तुम पर आ रहा है।
अफसोस तो हमे तुम्हारे लिए लग रहा है।
की किसी को ज़िंदा दफना कर,
क्या तुम कभी अपनी ज़िन्दगी जी पाओगे।
की किसी कि सरी खुशियां लेकर,
क्या तुम कभी खुशहाल रह पाओगे।
की किसी क़ पूरी दुनिया उजाड़ कर,
उसकी पूरी ज़िन्दगी बरबाद कर ,
क्या तुम खुद कभी आबाद हो पाओगे।
की किसी के दिल में बसी तुम्हारे लिए मोहब्बत को बैच कर,
क्या तुम किसी और को खरीद पाओगे।
की जो निगाहें तुम्हारी तलबगार रहती थी ,
क्या तुम उंकिंतलब मिटा पाओगे।
की जिसकी दुआओं के सायों में आज कल तुम रहते थे,
क्या अब उसकी बद्दुआओ को सेह पाओगे,
की जिसके बिना तुम रह नहीं पाते थे,
क्या अब उसके बिना तुम ज़िंदा रह पाओगे।
की या तुम खुश रह पाओगे।
की क्या जो आंखें आज भी तुम्हे देखने के लिए तरसती है,
क्या तुम उन उंकेलिए वापस आ पाओगे,
क्या तुम मुझसे दुबारा मिल पाओगे।
के मैं तो तुम्हे एक दिन माफ़ करही दूंगी,
लेकिन क्या तुम उस मोहब्बत के अंजाम आने तक खुद को माफ़ कर पाओगे,
क्या तुम खुशहाली से रह पाओगे।
भले ही तुम मेरी मोहब्बत को भुला दो,
लेकिन क्या तुम इस दिल बसी मेरी यादों को भुला पाओगे।
इतना सबकुछ करके क्या तुम खुद को माफ़ कर पाओगे ।
क्या तुम मुझे भुला पाओगे.....