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झूठा आदमी
तुमसे कैसा रिश्ता है मालूम नहीं
इसमें वफ़ा या धोखा है मालूम नहीं

चारो तरफ़ इक वीराना है सेहरा है
कितना मेरा दिल तन्हा है मालूम नहीं

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