...

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एक तारा
एक तारा जो खो गया मुझसे,
ये गुनाह जो हो गया मुझसे,
सही होकर भी गलत लग रहा है सब,
इस देह में मानो जल रहा है सब।

एक तारा जो दूर होकर भी पास था,
वही हर धड़कन और वही हर साँस था,
उसे खोकर न जाने कैसे जी रहा हूँ मैं,
आँसुओं का विष हर क्षण पी रहा हूँ मैं।

एक तारा जिसने रौशन किया था मुझको,
प्रेम रतन धन दिया था मुझको,
अच्छा होता अगर मैं मर जाता कहीं जाकर,
क्यों संभाल न सका ऐसे इंसान को पाकर।

एक तारा जिसके लिए मैं उसका आकाश था,
मैं रात की शीतलता और मैं ही दिन का प्रकाश था,
कर दिया अलग खुद से सब कुछ बूझ जान के,
मैं नहीं काबिल इस प्रेम के सम्मान के।
© Shivaay