...

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कश्मकश
ऊब गई जीवन से आ ले जा उसे,
जिस जहां मिले खुशी तू छोड़ आ उसे

अश्कों ने भी दामन छोड़ दिया उसका,
न जाने किस गली में था उसका बसेरा।

वक्त ने भी निचोड़ा हरदम उसे,
जहां पड़ी जरूरत छोड़ा अकेला उसे,

दबायी जाती रही आवाज़ उसकी,
की किसी ने न परवाह ही कभी,

न जाने किस बात का डर सताता उसे,
क्यों बंध के रह रही शापित रिश्ते में ऐसे?

छोड़ चली जाएगी एक दिन ,
आज़ाद होना चाहे वो जिस दिन।

क्या होगा बाद बच्चों का उसके?
छीन लेगा जमाना उन्हें भी उससे,

सीधी तो नहीं पर चालाक भी नहीं,
पता है हार जाएगी इस रिश्ते को भी वही।

दशकों पहले इक गलती की थी जो उसने,
भरोसा कर वर लिया था अजनबी को उसने।

आज छोड़ जाने को बेताब वो कब मुक्त हो पाएगी,
बच्चों को खो न दे , इस डर में क्या जीवन पापी संग बिताएगी?

GLORY ❤️



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