परिंदा आसमा का
हा महकती हूं गुलाब सी
मगर चाह कर भी इतरा नही सकती....
मन करता है अजनबी चेहरों से मिलने का
मगर इन चार दिवारियो के पार में जा नही...
मगर चाह कर भी इतरा नही सकती....
मन करता है अजनबी चेहरों से मिलने का
मगर इन चार दिवारियो के पार में जा नही...