...

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अबला नारी दसभुजा
आज समझी हूं मैं अबला नारी नहीं,
दसभुजा हूं मैं, कोई बेचारी नहीं।

दोनों हाथों में है यह जहान आज का,
दिल में समाया है धन राज़ का,
जान मेरी है मैं जग पे भारी नहीं,
आज समझी हूं मैं अबला नारी नहीं।

ख्वाब मेरे हैं दोनों बुझे पलकों पर,
नाम मेरा है, देखो बड़े फलकों पर,
मुश्किलों से जो मैं, अब तक हारी नहीं,
आज समझी हूं मैं अबला नारी नहीं।

घर- बाहर दोनों में कुशल आज हम,
समाज का सज्जित सा हैं साज हम,
शिव की हूं सति, मैं तुम्हारी नहीं,
आज समझी हूं मैं अबला नारी नहीं।

कहते हैं मैं कलियों के जैसे खिली,
पर्वत से पुरुष में नदी सी मिली,
बताओ किस शिला को मैं प्यारी नहीं,
आज समझी हूं मैं अबला नारी नहीं।

जल के अग्नि में आज फिर चमकी हूं मैं,
नूपुर की धुन पर भी ठुमकी हूं मैं,
रूप काली का है, मैं मुरारी नहीं,
आज समझी हूं मैं अबला नारी नहीं।।