शहरी परेशानी.....
#खोईशहरकीशांति
वो समय आया है
हर शख्स परेशां है
कुछ है जिम्मेदारियों की बोझ
ज्यादा है होड़ सबसे आगे निकल जाने की
ऐश्वर्य मे रहने की पिपासा
मनुज को न जाने कहाँ ले जाए
ये डायन जिसके सर बैठती है
मन अपराधी हो जाता है
लगाम किसीके पास नही है आजकल
न तन पे, न मन पे, न जुबां पे और
न निगाह पे
संयम मे मनुष्य नही ।
पर मनुष्य भी करे क्या....??
निगाहो को सिर्फ अच्छा देखना है
जुबान के स्वाद मे कितनी बढौतरी हो गई
अच्छे लिबास से जिस्म सजना चाहता है
कहते है कलियुग है
इसमे यही सब होता है
पर हमारे गाँव......
वो समय आया है
हर शख्स परेशां है
कुछ है जिम्मेदारियों की बोझ
ज्यादा है होड़ सबसे आगे निकल जाने की
ऐश्वर्य मे रहने की पिपासा
मनुज को न जाने कहाँ ले जाए
ये डायन जिसके सर बैठती है
मन अपराधी हो जाता है
लगाम किसीके पास नही है आजकल
न तन पे, न मन पे, न जुबां पे और
न निगाह पे
संयम मे मनुष्य नही ।
पर मनुष्य भी करे क्या....??
निगाहो को सिर्फ अच्छा देखना है
जुबान के स्वाद मे कितनी बढौतरी हो गई
अच्छे लिबास से जिस्म सजना चाहता है
कहते है कलियुग है
इसमे यही सब होता है
पर हमारे गाँव......