...

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तुम्हारी यादें
तुम चले गये मुझमें अधूरेपन को बसा कर,
कितनी बातें तो अभी बाकी ही रह गयीं,
कितनी मुलाकातें तो अभी हुयीं भी नहीं,
कितना कुछ बताना था तुम्हें, साझा करनी थीं बहुत सारी बातें तुमसे
वो सब अब अनकही ही रह गयीं।
ऐसे तो तुम मुझे नहीं याद आते,
लेकिन जब कोई पर्व नज़दीक आता है
तुम्हारे खालीपन का अहसास और गहरा हो जाता है।
जब कोई उत्सव आता है
तुम्हारी बातें, तुम्हारी सलाहें
ये दिमाग़ याद दिला देता है।
जब कोई मुश्किल की घड़ी आती है तब तुम में कितनी हिम्मत होगी
ये बात हमें समझ आती है।
जो तुम ना सिर्फ़ मुश्किलों से बाहर निकले, बल्कि जीत के बाहर निकले।
जब किसी बात पर हम मुस्कुराते हैं-
हमें तुम्हारी बात याद आती है,
हमें...