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#वो_दस_दिन......#कल्पना_में_मैं

बढ़ गया आज फिर ज़रा जायका मेरे चाय का...!!
हाथों में ली प्याली और आ गया ख्याल आपका..!!

प्याली में चाय, चाय में तेरी सूरत नज़र आने लगी..!!
आंखों में मोहब्बत लिए एक ख़्वाब मैं सजाने लगी..!!

मुमकिन नहीं अपना मिलना मैं वाकिफ़ हूँ इस बात से..!
पर क्या करूं हर बार मैं हार जाती हूँ मेरे ही ज़ज़्बात से..!!

बेसुध हो गिर पडूँ ज़मीन पर संग मेरे कुछ ऐसा हो आए..!
फिर न आये होश चाहे कोई कितना भी मुझे जगाए..!!

लें जाएं तुरन्त हॉस्पिटल मुझे, घर में सब होकर परेशान..!!
पढ़कर रिपोर्ट डॉक्टर कहे नेहा है 20 दिन की महेमान..!!

10 दिन खुशी खुशी अपने परिवार के साथ जीये जाऊं..!
रोज़ रात मैं घुट घुट कर खुद अपने आँसू पीये जाऊं..!!

जब बचे हो मेरी ज़िन्दगी में और दिन केवल दस..!!
कहूँ पापा मेरी ज़िन्दगी के आठ दिन मुझे दे दो बस..!!

लगकर माँ के सीने से जी भर रोती उन्हें रुलाती..!!
नौवे दिन वापस का बोल मैं संग तेरे चली जाती.!!

पहले दिन कहती तुमसे ले चलो मुझे तुम अपने गांव में.!
भूलकर कर AC कूलर अब सोना है पेड़ की छांव में..!!

दिन दूजे वहां से निकल कर दूर कहीं हम चले जाते..!
दिन तीसरे से जीते संग तेरे सब भूल कर रिश्ते नाते..!!

मुझे तुमसे प्यार है कितना ये बात तुम्हे चौथे दिन बताते..!!
दिल ही दिल डरते तेरी जुदाई से पर कुछ तुझसे न कह पाते.!

पाँचवे दिन हम बनाते पनीर और पूछते तुमसे तुम्हारी राय.!
दिन छठे हम तुमसे कहते आज पिला दो कड़क सी चाय.!!

दिन सातवां बीत जाता अपनी नोक झोंक टकरार में..!!
शाम को हम खो देते खुद को एक दूजे के प्यार में..!!

रात को तेरे बाहों में आकर हम मौत को लगे लगाते..!!
चले जाते इन जहां से दूर जहां से कभी न वापस आते.!

नौ दिन में वापस आने का माँ से किया वादा हम निभाते.!
तेरे पैसे की कफ़न में लिपटे हम आठवें दिन घर आते.!

माँ को तड़प के रोता देख हम खुद माँ के लिए तड़प जाते.!
निकल के अपने ख़्वाबों से बाहर फिर चाय अपनी पी जाते.!!

#वज़ह
© वज़ह