...

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ख़ामोशी
कोई जानता ही नहीं दिल की उम्मीदों को यहां।
मिलती है जमीं किसे? किसे मिल सका है यहां आसमां?
हम बेफिक्र होकर धुएं को ही महबूब बताते चले।
जहन में ढूंढते है ख़ुद को और ज़माने को भुलाते चलें।।
रेत बन कर...