...

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अक्स
थम के बरसे
या बरस के थमें
मुझे ये आसमाँ हर पल
मेरा ही अक्स लगता है।

जैसे कभी बरस के
सबकुछ कह देना
तो कभी अंदर ही
सबकुछ थामे रहना
मुझे ये आसमां हर पल
मेरा ही अक्स लगता है।

कभी धुला धुला सा
आईने जैसा साफ़
तो कभी काले बादलों की मानिंद
अपने ही में उलझा हुआ सा
मुझे ये आसमां हर पल
मेरा ही अक्स लगता है।

इसके बदलते महकते रंग
खिलखिलाती हँसी
बादलों की सिलवटें
बिजली की गड़गड़ाहट
भीनी सी इसकी बौछारें
कभी बेहिसाब सा इसका बरसना
और कभी इसका बेइंतहा सूनापन
सब मेरा ही अक्स लगता है।

थम के बरसे
या बरस के थमें
मुझे ये आसमां हर पल
मेरा ही अक्स लगता है।

रूहसे
गुंजन